ये चंद अलफाज हर पिता की भावनाओ को कहीं न कहीं व्यक्त करते हैं। लेकिन षहरों के बिगडते माहौल ने शवनाओ को घायल कर दिया है। जिंदगी के हर छोटे-से-छोटे सपने को साकार करने वाले माँ बाप को उनके सपनों के तोहफे में आस नसीब होते है।माॅ बाप के जलाए उस संस्कारो के दिये की रोषनी षहर में आते ही धुंधली दिखने लगती है। सपनो से तेज शगती इस दुनिया में वो अपने आप को संभाल नहीं पाता और सही गलत का चुनाव करने की षक्ति खो बैठता है। इस नई दुनिया की हर चीज़ नई होती है, नए सहपाठी,नए षिक्षक और नए वातावरण में प्रवेष करता है। पर ये नई दुनिया कब उसकी वास्तविकता को खत्म कर देती है,पता ही नहीं चलता । वो बनने कुछ और आता है,और बना कुछ और दिया जाता है। उसे उसके कुछ सहपाठी षराब - सिगरेट की ओर आकर्षित करते है,तो कुछ लडकियों के नम्बर लाने,पढाई न करने के लिए मजबूर करते है। तो कुछ देर रात जगने, सुबह काॅलेज देर से जाने को मजबूर करते है। वास्तव में यह सब कुछ संगत का ही असर होता है। हमारे बुजुर्गो ने सत्य ही कहा है ’’जैसी संगत वैसी रंगत’’। इसके साथ ही वह अपने जेब खर्च पर पकउ नहीं बना पाते है। जिसके कारण कहीं-न-कहीं , छोटी-मोटी नौकरी की तलाष करने लगता है,तो कहीं उधारी, करजे में अपने आप को जकड लेता है। वह इस चकाचैंद भरी जिंदगी में मानो एैसे रम जाता हो कि ’’ पैसै पेड पर उगते है और बापू तौड़ कर दे देते है। ‘‘ जिसको अच्छी संगत की सौगात मिली हो वो कामयाबी के षिखर पर पहुॅच जाता है और जिसको बुरी संगत मिले, वो अपनी जिंदगी को बर्बादी के अंधेरे में डुबो लेता है। ये अंधेरा न केवल उस चिराग को बुझाता है, बल्कि उसके परिवार के लिए खून के आॅसू भी छोड जाता है। सपनो से भरी उन आॅखो में एक घुठन सी दिखाई देने लगती है, जो जीवन होते हुए भी जीने नहीं देती है। अरे !जरा उन बूढ़े माता-पिता से पूछो जो कि रात दिन मेहनत-मज़दूरी करके तुम जैसे लाड़ले का पढ़ाई का बोझा भी ढोते है। और दो वक्त की रोटी भी चैन से नहीं खा पाते ! अगर इस प्रकार युवा वर्ग का वातावरण बिगड़ता चला जाएगा तो वास्तव में एक-न-एक दिन उसका उज्वल भविष्य अंधकार की गहराईयों में डूब जाएगा।
संदीप सिंह, फिरोज़ाबाद!यूपी
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